मैं राजेष,5-B का छात्र
पढता हुँ सरकारी स्कूल
कणियाम्बेटा में .
मैं सच सच बतलाऊँगा
अपनी पढाई की कहानी.......
कक्षा में थे 50 छात्र,
वह भी पिछडे
केवल दो ही कालांश थे
हिन्दी में.
वह भी हफ्ते के अंतिम बेला में.
क्या करुँ...बेचारी
हाँफती थी कभी...कभी.
कुछ करने को विवश थी,
लेकिन कुछ न कर पायी बेचारी.
नतीजा क्या हुआ....
आज भी मैं निरक्षर
पढ-लिखने में असमरथ
Ajikumar wayanad